इतवारी लाल के सपने

सोम से शनि तक
खुद को खुद से आगे ले जाने की दौड़ में
लगा रहता हूं
रविवार मेरा होता है
इस दिन खुद के करीब पहुंचने की कोशिश करता हूं
इस दिन खासी की दवाई खाना भूल जाता हूं
एक इतवार मैने सत्तर साल के छायाचित्र देखे
एक इतवार मैने देव साहब की सारी फिल्में मन ही मन देख डाली
एक इतवार मुझे मन भर दूध देनेवाली कामधेनु गाय मिली
मैं उसे बता न पाया, मुझे क्या चाहिए
इतवार के दिन चिकनी चुपड़ी बाते लिखना मेरी  आदत सी बन गई है
गिने चुने शब्दों के गिरेवान से बाहर निकलने की कोशिश करता हूं इस दिन
अक्सर इस दिन कितने अपरिपक्व चित्रनाट्य लिखे मैने
अक्सर यह दिन जीवन के सफर में बिछड़े साथियों के साथ बिताए मैने  
इतवार के दिन अक्सर
स्वयं से मेरा परिचय होता है
इतवार मेरा है
इतवार पर मुझे है पूरा ऐतवार।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: