नरेंद्र, शिकागो में, सितम्बर का महीना था,
तुमने अमेरिका के भाई बहनो से कहा था
एक ऐसे धर्म के बारे में, जिसकी नीव पांच हज़ार वर्ष पहले पड़ी थी। ऐसा धर्म,
जिसने दुनिया को सहनशीलता का पाठ सिखाया था। सभी धर्मो की जननी ने सभी धर्मो को सत्य का रूप दिखाया था।
मनुष्य, अपने अनुकूल अलग-अलग मार्ग चुनता है। सभी नदियां, जाकर मिलती हैं समुद्र में। मुझे याद है नरेंद्र, तुमने कहा था,
ईश्वर से तुमने जब भी कुछ माँगा, उसने न दिया। दिया उसने, जिसकी ज़रूरत थी तुम्हे।
नरेंद्र, नये भारत को ज़रूरत है तुम जैसे नरेंद्र की। देश को ज़रूरत है एक अमृत सत्य की,
जो समझता है जरूरत और चाहत के बीच भेद।