मैने सोचा, क्यों न उस भाषा में लिखूं
जिसमें सोचता हूं
मैने लिखा और भेज दिया
मेरा लेख एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ
मेरा उत्साह बढ़ा और मैं लिखने लगा
उस भाषा में जिस भाषा में सोचता हूं
मेरी रचनाएं उतनी ही आपकी हैं जितनी मेरी
इसके सभी पात्र आपके परिचित हैं
फिर भी इन्हे आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है मैने
समय समय पर परिचित से परिचय मात्र एक औपचारिता नही, आवश्यकता भी है ।