इस वातावरण में, आबद्ध घर बैठे,
हॉर्न की जगह, हवा की सांय सांय सुन रहे हैं।
घर बैठकर काम करने की अनुमति है,
न सुबह की भगदड़, न घर लौटने का इंतज़ार।
कितनी बातें जमी पड़ी है करने को,
कितने रिश्ते इंतज़ार कर रहे है जुड़ने को,
दादी-नानी के नुस्खे काम आ रहे हैं,
तन और मन जोड़ने को।
एक शत्रु के अवतरित होने से,
कितनी शत्रुताएं कम हो जाती हैं,
कितने प्रेम दृढ हो जाते हैं।
युग युगांतर से चली आ रही है इस लड़ाई से,
आओ मिलकर लड़े,
विज्ञान और कला का सहारा लेकर,
बनाएं स्वच्छ वातावरण और सुन्दर मन।