सब कुछ भूलने के बाद भी
न भूली वो सब कुछ।
याद है उसे मेरी हर पसंद, नापसंद।
कैसे कोई किसीका इतना ध्यान रख सकता है?
इसे मैं आतिथ्य कहूँ, या परम्परा का सम्मान, या समय का आदर।
कुछ समय, ब्यतीत होकर भी अतीत नहीं बनते हैं।
छोटी-छोटी अभिब्यक्तियों में आबद्ध होकर रह जाते हैं कुछ समय।
चिरंतन साथ रहने के लिए बनते हैं कुछ समय।
समय के आदर में शायद निहित है आतिथ्य का भविश्व और परम्परा का सम्मान।
निश्चित समय पर आगमन होता है सब कुछ भूलने के समय का।
समय से पहले आ जाते हैं कुछ निश्चित समय।